शब-ए-बरात गुनाहों से तौबा और बख़्शिश की रात है, इस महामारी में अपने घरों में रहकर ही इबादत करे-हाफिज अज़मत अली

बेलहरा बाराबंकी। इस्लामिक कलेंडर के आठवें माह शाबान की 15वीं रात जिसको शब-ए-बरात कहते हैं, गुनाहों से तौबा और निजात की रात है,सच्चे दिल से तौबा करने वालों को उसका रब माफ कर देता है। इस रात में फरिश्ते जमीन पर फैल जाते हैं और एलान होता है की मांग लो अपने रब से जो बड़ा रहम करने वाला और गुनाहों को बख्शने वाला है। शब-ए-बरात के मौके पर मस्जिदों और मुस्लिम बहुल इलाकों में खास चहल-पहल रहती थी लेकिन इस बार कोरोना महामारी के दृष्टिगत लॉक डाउन का पालन करते हुए अपने घरों में रहकर ही इबादत करें और दूसरों को भी बताएं। उक्त बातें हाफिज अज़मत अली ने कही। उन्होंने बताया कि इस रात की बड़ी फजीलत है। इसी रात अल्लाह अपने फरिश्तों को पूरे साल की जिम्मेदारी सौंप देता है। यानी किसकी मौत होनी है. किस की पैदाइश, किसको मिलेगा रोजगार सारा लेखा-जोखा फरिश्तों को सौंप दिया जाता है और अल्लाह पहले आसमान पर आ जाते है। इस रात इबादत का खास एहतिमाम किया जाता है, गरीबों में इमदाद बांटी जाती है। उन्होंने ने बताया कि घरों में ओरतों को एहतमाम के साथ कुरान शरीफ की तिलावत करनी चाहिये और नमाज़ पढ़नी चाहिए। महिलाएं घरों में नफिल नमाज पढ़ती हैं और अपने रब के सामने गिड़गिड़ाते हुए अपने और पूरी इंसानियत के लिये दुआ करती हैं। उन्होंने युवाओं से हुड़दंग न मचाने की अपील करते हुए कहा कि कोई ऐसा अमल न करें जिससे किसी को दिक्क्त हो वो इस्लाम के खिलाफ है। उन्होंने ने आगे बताया कि इस्लाम मे शब-ए-बारात की अहम फजीलत बताई गई हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शब ए बारात शाबान महीने की 14वी तारीख की रात को मनाई जाती हैं । शब ए बरात दो शब्दों से मिलकर बनी है जिसमे शब का मतलब रात और बारात का मतलब बरी होता हैं, यानी शब ए बारात की पाक रात को इबादत करके इंसान हर गुनाह से बरी हो सकता हैं।  यह इबादत की रात होती है। हाफिज अज़मत अली ने अंत मे लोगों से अपील की है कि सभी लोग इस महामारी में अपने घरों में रहकर ही इबादत करें ताकि खुद बी बचें और दूसरा भी महफूज़ रखें क्यूंकि दूसरों को तकलीफ से बचना भी बडी इबादत है, सरकार के निर्देशो का पालन करें, आप सभी अपनी इबादत में पूरे देश मे फैली बीमारी से निजात की दुवाएं भी करें।