प्रयागराज, स्टूडेंट्स फैक्ट फाइंडिंग मिशन यूपी के मद्देनजर सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान सभी 15 हिंसा प्रभावित शहरों (मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, फिरोजाबाद, सहारनपुर, भदौही, कानपुर, लखनऊ, मऊ, वाराणसी, फैजाबाद, संभल, शामली) की यात्रा की। 30 प्रमुख विश्वविद्यालयों (जैसे बीएचयू, डीयू, जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया, आईआईटी-दिल्ली, आईआईएमसी, एनएलयू, आईआईएम-अहमदाबाद, इलाहाबाद विश्वविद्यालय आदि) के छात्र तथ्यों को इकट्ठा करने और हिंसा के शिकार लोगों के साथ बातचीत करने के लिए 14 -19 जनवरी तक इन प्रभावित क्षेत्रों के दौरे पर रहे । हम 28 जनवरी 2020 को इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीड़ितों के परिवारों की रिपोर्ट, पुलिस की बर्बरता और राज्य हिंसा की घटनाओं के साथ-साथ वीडियो-ऑडियो गवाही साझा कर रहे हैं।
पीड़ितों और प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने वाले छात्रों ने सामूहिक रूप से राज्य भर में सांप्रदायिक और आर्थिक आधार पर पुलिस की बर्बरता और उत्पीड़न का एक सामान्य पैटर्न देखा है। उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन द्वारा प्रचलित प्रमुख सामान्य पैटर्न और तरीके निम्नलिखित हैं जो " लॉलेस (अन्यायपूर्ण, विधिविरुद्ध) उत्तर प्रदेश" की पुष्टि करते हैं:
उत्तर प्रदेश के सभी 15 शहरों में हिंसा का सामान्य पैटर्न जहां छात्र तथ्य खोजने के लिए गए थे:
• पुलिस ने विशेष रूप से उन मुस्लिम बस्तियों को निशाना बनाया जो समाज के सबसे निचले तबके से थे और आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थे,कूड़ा बीनने का काम करते थे,दिहाड़ी मजदूर थे, छोटे ढाबों में काम करते थे आदि। मेरठ में हमें 20 दिसंबर 2019 के दौरान हुई घटना के बारे में पता चला। शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस ने अत्यधिक शक्ति का इस्तेमाल किया और जनता पर गोलीबारी की, जिसके परिणामस्वरूप 25 वर्षीय युवक की मौत हो गई, जो बेकार सामग्री (कूड़ा कचरा) इकट्ठा करके वापस आ रहे थे।
• ऐसे कई उदाहरण थे, जहां प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष लोगों की मौत हुई, जिसमें नाबालिग (स्कूल जाने वाला बच्चा) और युवा भी शामिल हैं। पुलिस ने निधार्रित मानकों का पालन नहीं किया, जो उन्हें निष्पक्षता के साथ पालन करना चाहिए। ज्यादातर मामलों में हमने पाया कि गोली कमर के ऊपर चलाई गई थी।
• यह जानकर हैरानी हुई कि कैसे यूपी पुलिस ने बिना सबूत के लोगों को गिरफ्तार किया है और खासकर रात के दौरान वे घरों में छतों से या दरवाजे तोड़कर घुस रहे थे। इसके परिणामस्वरूप कई परिवार अस्थायी रूप से गाँव से भाग गए हैं जबकि कई मामले ऐसे हैं जहाँ पुरुष सदस्य अब भी अपने घर नहीं लौट रहे हैं। यह राज्य में नई असामान्य स्थिति को उजागर करता है।
• पुलिस व्यक्तिगत रूप से लोगों को निशाना बना रही है, प्रदर्शनकारियों को उकसा रही है और लोगों के खिलाफ फ़र्ज़ी एफआईआर कर रही है। पुलिस अपनी कार्यवाहियों की वैधता के लिए और अपने झूठे दावो को प्रमाणित करने के लिए आम लोगों व प्रदर्शनकारीयो की तस्वीरे और पते समाचार पत्रों, पोस्टरों और होर्डिंग्स के माध्यम से सार्वजनिक कर रही। जो उनके परिवारों के लिए भी खतरा बनते हैं।
• कई जगहों पर पुलिस आम लोगों को बिना नाम लिए एफआईआर में शामिल करने की धमकी देकर पैसे ले रही है।
• मृतक के परिवारों को शव उनके घर वापस ले जाने की अनुमति नहीं है और उन्हें पुलिस निगरानी में एक घंटे के भीतर दफनाने के लिए मजबूर किया जाता है साथ ही उन्हें परिवार के सदस्यों और अन्य रिश्तेदारों का इंतजार नहीं करने का निर्देश दिया गया है।
• महीने बीतने के बाद भी लोगों को अभी भी अस्पताल से पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिल रही है अस्पताल द्वारा पोस्टमार्टम रिपोर्ट को जानबूझकर विलंबित किया जा रहा है। जबकि किसी मामले में जहां लोगों को रिपोर्ट मिली, हमने पाया कि यह पूरा नहीं था क्योंकि कई तथ्य गायब हैं।
• ऐसे उदाहरण हैं जहां अस्पतालों ने पुलिस की गोलीबारी से घायल हुए लोगों के इलाज से इनकार कर दिया और कहा जा रहा था कि ऊपर से निर्देश थे कि किसी को भी चोट लगे तो उनको उपचार न दें जिसकी वजह से कई लोगों की जान चली गई जो बचाई जा सकती थी।
• पुलिस ने एक झूठी कहानी बनाई कि जो लोग घायल हुए या मारे गए वे या तो मुस्लिम समुदायों के बीच हुए गैंगवार में शामिल थे या प्रदर्शनकारियों द्वारा खुद को घायल / मार दिया गया था। इसके अलावा, पुलिस ने यह कहते हुए मौतों के लिए एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया कि उन्होंने किसी को गोली नहीं मारी।
• जो लोग अस्पताल गए और इलाज कराने में कामयाब रहे, उन्हें एक्स-रे और अन्य दस्तावेजों को अपने साथ रखने की अनुमति नहीं दी गई,सभी रिपोर्टों को अस्पताल प्रशासन द्वारा जब्त कर लिया गया है।
• जहाँ भी हम गए, हमने पाया कि पुलिस ने अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया है और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया है और पीड़ितों को यह लिखने के लिए मजबूर किया कि प्रदर्शनकारी इस नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं। मुजफ्फरनगर में पुलिस ने बलपूर्वक अब्दुल कादरी के घर में घुसकर उनकी निजी संपत्ति को तोड़ा । इसके अलावा, प्रशासन ने उनका समर्थन करने के बजाय पीड़ितों के परिवारों को संपत्ति के नुकसान के लिए कुर्की नोटिस भेजा है।
• विभिन्न हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों, सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों और आरएसएस, बजरंग दल, आदि और यहां तक कि भाजपा के मंत्रियों जैसे कि संजीव बलियान जैसे लोग हिंसा भड़काने और पुलिस पर हमला करने और लोगों को मुस्लिम संपत्ति को जलाने में मदद करते हुए देखे गए।
• यह आलम 20 दिसंबर 2019 को हुई हिंसा के बाद से है, लेकिन सरकार या केंद्र, स्थानीय प्रशासन और सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के किसी भी व्यक्ति ने मृतक या पीड़ित परिवारों का दौरा नहीं किया है।
• इस हिंसा को पिछले कुछ वर्षों में सरकार और सोशल मीडिया द्वारा फैले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की परिणति के रूप में देखा जा सकता है जो प्रशासन और आम लोगों की मानसिकता को प्रभावित करता है और विशेष समुदाय के प्रति घृणा की भावना पैदा करता है।
उत्तर प्रदेश की स्थिति पर छात्रों की रिपोर्ट