राम मंदिर मुद्दे को चर्चा से बाहर नहीं होने देगी विश्व हिंदू परिषद, गांव-गांव जाकर करेंगे संपर्क
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के साथ तीन दशक से इस मुद्दे पर भले ही चलाया जा रहा आंदोलन अपनी मंजिल पा चुका हो। बावजूद इसके विश्व हिंदू परिषद इस मुद्दे को अभी चर्चा से बाहर नहीं रहने देना चाहती। इसके लिए उसने आगामी चार महीनों के कार्यक्रमों का खाका खींच लिया है। मकसद सिर्फ एक कि किसी न किसी तरीके से लोगों के बीच यह मुद्दा चर्चा में बना रहे। इनमें विकास खंड स्तरों पर सम्मेलनों से लेकर राम महोत्सव सहित अन्य कई कार्यक्रम शामिल हैं। जिसकी विस्तृत योजना को इन दिनों अंतिम रूप दिया जा रहा है।


दरअसल, मंदिर आंदोलन को तीखे तेवर देने वाले और अपनी सांगठनिक क्षमता तथा तेवरों से इस मुद्दे पर संघर्ष को नया स्वरूप देने वाले अशोक सिंहल कहा करते थे कि उनका आंदोलन सिर्फ अयोध्या में पत्थरों और सीमेंट का मंदिर बनाना नहीं बल्कि देश में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति की विदाई तथा हिंदुओं में स्वाभिमान की स्वाभाविक चेतना को जगाना है। हिंदुत्व की चेतना व स्वाभिमान का राष्ट्रमंदिर बनाकर खड़ा करना है। संभवत: इसीलिए विहिप ने हिंदुओं के पक्ष में निर्णय आने के बावजूद इस मुद्दे को किसी न किसी बहाने चर्चा में बनाए रखने के उपक्रमों पर काम शुरू कर दिया है।
इसलिए जनजागरण जारी रखने की रणनीति
विहिप के संरक्षक मंडल के सदस्य पुरुषोत्तम नारायण सिंह भी सिंहल की बात को ही आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि हिंदुओं में आई चेतना के कारण ही तमाम दलों को मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति से तोबा करना पड़ रहा है। कहने में संकोच नहीं कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन की इस बदलाव में प्रमुख भूमिका है। किसी से यह छिपा नहीं है कि छद्म धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कितने लंबे समय तक देश के बहुसंख्यक हिंदुओं को अपने ही देश में दूसरे नंबर के नागरिक जैसा बनकर रहना पड़ा। इसलिए विहिप अपने वैचारिक अधिष्ठान के उद्देश्यों और संकल्पों के अनुसार हिंदुओं के जनजागरण का काम करती रहेगी।


इस तरह की गई है तैयारी



क्षेत्र संगठन मंत्री अंबरीष बताते हैं कि सांगठनिक पुनर्गठन के काम के तहत सितंबर में चलाए गए अभियान में प्रदेश में लगभग आठ हजार गांवों में संगठन की नई समितियां बनी हैं। इसी के साथ पुरानी समितियों में भी कई का पुनर्गठन किया गया है। गांव समितियों के जनवरी-फरवरी में ब्लॉक वार सम्मेलन किए जाएंगे। इसके बाद गांव-गांव 'राम महोत्सव' के आयोजन होंगे।
राम महोत्सव में जगह-जगह भगवान राम की पूजा-अर्चना के सामूहिक आयोजनों के साथ संगोष्ठियां होंगी। भगवान राम भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। इसलिए स्वाभाविक है कि समितियों के सम्मेलनों और राम महोत्सव में हिंदुत्व की सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण के मुद्दे पर सहयोग का आह्वान किया जाएगा तथा उन्हें इसकी जरूरत भी बताई जाएगी।
इस बीच, सूत्र बताते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर मुद्दे पर अब तक हुई लड़ाइयों और मुकदमेबाजी की जानकारी आम लोगों तक पहुंचाना चाहती है, जिससे वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के महत्व को समझ सकें। साथ ही यह भी समझें कि विहिप ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को हिंदुओं में सांस्कृतिक चेतना जगाने का जरिया क्यों बनाया। इन कार्यक्रमों में इन मुद्दों पर लोगों को विस्तार से जानकारी दी जाएगी।




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