राज्यसभा मार्शल के नए ड्रेस कोड पर उठे सवाल, सभापति ने दिए समीक्षा के आदेश
संसद के शीतकालीन सत्र की शुरूआत 18 नवंबर को हुई और इस दिन आसन की सहायता के लिए मौजूद रहने वाले मार्शल एकदम नई वेषभूषा में नजर आए। इन मार्शलों ने सिर पर पगड़ी की बजाय 'पी-कैप' और आधुनिक सुरक्षाकर्मियों वाली वर्दी धारण कर रखी थी जिसका रंग गहरा हरा था। बहरहाल उनकी इस नई वर्दी पर कुछ राजनीतिक नेताओं की टिप्पणियों के बाद सभापति ने इसकी समीक्षा के आदेश दे दिए।


मंगलवार को सभापति ने सदन में कहा कि राज्यसभा सचिवालय ने मार्शलों के लिए नया ड्रेस कोड तय किया था। लेकिन राजनीतिक नेताओं तथा कुछ प्रबुद्ध नागरिकों की ओर से इस संबंध में कुछ सुझाव एवं टिप्पणियां मिली हैं। नायडू ने कहा 'मैंने सचिवालय से इसकी समीक्षा करने के लिए कहने का फैसला किया है।'

दरअसल, सदन में अध्यक्ष की कुर्सी के पीछे खड़े होने वाले मार्शल सेना के जैसी यूनिफॉर्म पहने नजर आए। अब से पहले ये मार्शल बंद गले की कमीज और साफा पहने नजर आते थे। मार्शलों ने मिलिट्री स्टाइल की टोपी के साथ नीले रंग की यूनिफॉर्म पहनी हुई थी और कंधे पर पट्टियां थीं। 
वहीं, इसको लेकर पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने विरोध किया था। उन्होंने अपनी असहमति एक ट्वीट के जरिए जाहिर की जिसमें उन्होंने लिखा था कि सेना से संबंध न रखने वाले लोगों द्वारा सैन्य यूनिफॉर्म की नकल करना और पहनना अवैध है और सुरक्षा के लिए जोखिम है।


साल 1950 के बाद पहली बार हुआ बदलाव



राज्यसभा सूत्रों के मुताबिक मार्शल की यूनिफॉर्म में अंतिम परिवर्तन साल 1950 में हुआ था, तब से अब तक यह पहला बदलाव है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के मीडिया सलाहकार एए राव ने बताया, कोई बदलाव किए हुए लंबा समय बीत गया था, इसलिए उपराष्ट्रपति ने सोचा कि हमें यह अब करना चाहिए।
कौन होते हैं मार्शल और क्या है इनका काम
स्पीकर के बाएं ओर खड़ा व्यक्ति मार्शल होता है और दूसरा व्यक्ति डिप्टी मार्शल। लोगों को लगता होगा कि इनका काम चेयर के आदेश पर उपद्रवी सदस्यों को बाहर करना और उपद्रव के दौरान किसी को स्पीकर तक पहुंचने से रोकना होता है। अगर आप भी यही समझते हैं को आप भी गलत हैं। 
दरअसल, ये मार्शल सदन चलाने में स्पीकर की मदद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका चयन भी एक कठिन प्रक्रिया द्वारा होता है जिसमें संसद के नियमों और प्रक्रियाओं को लेकर इनके ज्ञान को परखा जाता है। तो सवाल यह है कि असल में सांसदों को बाहर कौन ले जाता है? यह काम मार्शलों का नहीं बल्कि वार्ड अधिकारियों का है।