पंजीकरण किसी का और अल्ट्रासाउंड कर रहा कोई
झांसी। जनपद में संचालित अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर लिंग परीक्षण का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। सेंटर का पंजीकरण किसी के नाम है और अल्ट्रासाउंड कोई कर रहा है। सेंटर पर डॉक्टर की पहचान की कोई व्यवस्था भी नहीं है। इस आड़ में कुछ सेंटर संचालक तो दूसरे कर्मचारियों से लिंग परीक्षण का धंधा करवा रहे हैं।
जिले में 70-75 अल्ट्रासाउंड सेंटर चल रहे हैं। इनमें से कम से कम दस सेंटरों में लिंग परीक्षण का खेल चल रहा है। ठेका लेकर दूरदराज के लोगों को लिंग परीक्षण के लिए झांसी लाया जा रहा है। एक मशीन के पंजीकरण की आड़ में बिना ट्रैकर लगी दूसरी अल्ट्रासाउंड मशीन चलाई जा रही है। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की सुस्ती की वजह से यह धंधा तेजी से फल फूल रहा है। स्थिति ये है कि पंजीकरण किसी चिकित्सक के नाम है और अल्ट्रासाउंड कोई कर रहा है। पंजीकृत चिकित्सक की पहचान के लिए सेंटर पर फोटो लगाने की कोई व्यवस्था नहीं है। यदि डॉक्टर का मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का पंजीकरण फॉर्म ही लगवा दिया जाए तो भी मूल रेडियोलॉजिस्ट व अन्य चिकित्सक की पहचान हो सकती है।
एमबीबीएस तक ने खोल रखे सेंटर
स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने बताया कि जिले में एमबीबीएस पासआउट तक ने अल्ट्रासाउंड सेंटर खोल रखे हैं। जबकि, यह नियम विपरीत है। नियमानुसार एमएस/एमडी गायनी चिकित्सक स्त्री एवं प्रसूती रोग और गर्भधारण संबंधी अल्ट्रासाउंड कर सकती हैं। जबकि, डीएम गैस्ट्रोलॉजिस्ट पित्त और पेट संबंधी, डीएम कार्डियोलॉजिस्ट ह्रदय संबंधी अल्ट्रासाउंड कर सकते हैं। वहीं, एमडी रेडियोलॉजिस्ट को ही पूरी शरीर का हर प्रकार का अल्ट्रासाउंड करने का अधिकार है। मगर जनपद में एमबीबीएस डिग्रीधारक तक अल्ट्रासाउंड कर रहे हैं।
अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर रेडियोलॉजिस्ट व अन्य डॉक्टरों की पहचान के लिए क्या नियम है, इसका पता लगाएंगे। यह सही बात है कि डॉक्टर की पहचान की कोई व्यवस्था सेंटर पर होनी चाहिए। पंजीकृत चिकित्सक के अलावा कोई अल्ट्रासाउंड नहीं कर सकता है। यदि कोई ऐसा करता मिला तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। - डॉ. जीके निगम, सीएमओ।