मेरठ में 70 हजार खटारा वाहनों का धुआं घोल रहा जहर
प्रदूषण को लेकर भले ही पुलिस प्रशासन, धान की पराली जलाने और फैक्टरियों से निकलने वाले धुएं को जिम्मेदार मानता हो, लेकिन पुलिस प्रशासन की भी इसमें कम लापरवाही नहीं है। मेरठ जिले में लगातार वाहनों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। खटारा वाहनों से निकलने वाले जहरीले धुएं से भी प्रदूषण बढ़ रहा है।

आरटीओ में इस समय 7.55 लाख वाहनों का रजिस्ट्रेशन है, जबकि ट्रैफिक पुलिस का कहना है कि 1.25 लाख वाहन ऐसे हैं जो दूसरे जिलों और राज्यों के हैं, लेकिन यह वाहन मेरठ की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। शहर के प्रमुख मार्गों और अन्य स्थानों से प्रत्येक दिन औसतन चार लाख से अधिक वाहनों का आवागमन होता है। प्रत्येक साल 35 हजार से 40 हजार वाहन लगातार बढ़ रहे हैं। वहीं खटारा वाहनों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। एनजीटी का आदेश है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में डीजल से चलने वाले वाहन जो दस साल से अधिक पुराने हैं और पेट्रोल से चलने वाले वाहन जो 15 साल से अधिक पुराने हैं वह प्रतिबंधित हैं, लेकिन पुलिस प्रशासन अवैध वाहनों पर कार्रवाई के नाम पर चुप्पी साध लेता है।

70 हजार से अधिक हैं खटारा वाहन  
जिले में खटारा वाहनों में डीजल से चलने वाले 10 हजार टेंपो हैं। यह वाहन 10 साल से अधिक पुराने हैं। वहीं डीजल से चलने वाले ट्रक, कैंटर, कंटेनर, डीसीएम, टाटा मैजिक, जीप और अन्य यात्री वाहन की संख्या 25 हजार है जो खटारा की श्रेणी में हैं। रोडवेज की बसों व अन्य सरकारी वाहन जो डीजल से चल रहे हैं और 10 साल से अधिक पुराने हैं ऐसे वाहन 1200 से अधिक हैं। ट्रैक्टरों की संख्या छह हजार है। तीन हजार डीजल से चलने वाले अन्य वाहन हैं। पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की संख्या 30 हजार हैं।