महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार: उद्धव ने बदला शिवसेना की राजनीति का स्वर

महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना तय होने पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैंने कभी सोचा नहीं था, किसी दिन इस कुर्सी पर बैठूंगा। दरअसल उद्धव को रिमोट कंट्रोल की राजनीति पिता बाल ठाकरे से विरासत में मिली थी। इसमें उन्होंने वक्त की नब्ज पढ़ते हुए यह जरूर बदलाव किया कि बेटे आदित्य को इस विधानसभा चुनाव में उतार कर परिवार में परिवर्तन की नींव रख द



बेटे को मुख्यमंत्री देखने का पुत्रमोह भी उन्होंने नहीं छुपाया। जिसकी कड़ी आलोचना भी हुई। मगर समय ने ऐसा दांव चला कि देखते-देखते खुद उद्धव कुर्सी के खेल के केंद्र में आए गए। बाला साहेब ठाकरे के तीन पुत्रों में उद्धव सबसे छोटे हैं। 27 जुलाई 1960 को उनका जन्म हुआ। पिता की आक्रामक सोच के विपरीत उन्होंने शांत स्वभाव पाया और जीवन के शुरुआती 40 वर्षों में वह राजनीति से लगभग दूर ही रहे।
फोटोग्राफी उनका पहला शौक था। पिता कार्टूनिस्ट भी थे और विरासत में मिले कला से प्यार के चलते उद्धव ने मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में शिक्षा पाई। इस कॉलेज में पढ़ते हुए उनकी मुलाकात डोंबीवली में रहने वाली रश्मि पाटणकर से हुई। प्यार हुआ। शादी हुई। वह पत्नी के साथ एक फ्लैट में रहने चले गए। मगर दो साल बाद मातोश्री में लौट आए। फोटोग्राफी के शौक के बीच उन्होंने चौरंग नाम से एक विज्ञापन एजेंसी चलाई।
उधर, उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे बिल्कुल बाला साहेब के कदमों पर चलते हुए राजनीति में तेजी से उभर रहे थे। मगर पारिवारिक समीकरण ऐसे बने कि उद्धव का रिश्ता राजनीति से जुड़ा। 2006 में बाल ठाकरे ने उद्धव को अपना वारिस घोषित किया और राज ने नाराज हो कर दूसरी पार्टी बना ली। इस समय तक उद्धव ने राजनीति के सबक सीख लिए और पिता की विरासत को बखूबी संभाल लिया। 2002 में शिवसेना को अपने नेतृत्व में बीएमसी चुनाव में जीत दिलाई। 2012 में पिता के निधन और धीर-गंभीर स्वभाव के विपरीत माहौल में उद्धव का स्वास्थ बुरी तरह प्रभावित हुआ। उन्हें एंजियोप्लास्टी से गुजरना पड़ा। उनके हृदय की रक्त धमनियों से तीन ब्लॉक हटाए गए।

पार्टी को उग्र हिंदुत्व की छवि से बाहर निकाला


कई लोग शिकायत करते हैं कि उद्धव के नेतृत्व, राजनीति और भाषणों में बाला साहेब ठाकरे जैसी बात नहीं है। मगर उन्होंने अपना स्वभाव नहीं छोड़ा। शिवसेना को पर-प्रांतीय विरोधी और उग्र हिंदुत्व की छवि से बाहर निकाला। मुंबई में प्रसिद्ध 'मी मुंबईकर' नारा उन्हीं का दिया है। पिता की तरह वह तानाशाही फैसले नहीं लेते बल्कि आस-पास के लोगों से विचार-विमर्श करते हैं।

पत्नी की अहम भूमिका


उद्धव के करीबी बताते हैं कि जैसे बाल ठाकरे के जीवन में उनकी पत्नी मीना ताई ठाकरे की भूमिका थी, वैसा ही रोल रश्मि ठाकरे का उद्धव के जीवन में है। संभवत: यह उद्धव का स्वभाव है कि उन्हें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हल्के ढंग से लेते रहे, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद उनका नया रूप दिखा। उन्होंने पिता को वचन दिया था कि महाराष्ट्र में शिवसेना का मुख्यमंत्री अवश्य बनेगा। अब यह नियति ही है, जिसने इस कुर्सी पर उद्धव को ही बैठा दिया।

खास बातें...



  • उद्धव का जन्म 27 जुलाई, 1960 को हुआ। पिता स्व. बाला साहेब ठाकरे की वह तीसरी संतान हैं। तीन भाइयों में सबसे छोटे। ठाकरे परिवार में सब उन्हें प्यार से 'दादू' बुलाते हैं।

  • उद्धव और रश्मि ठाकरे के दो बेटे हैं। आदित्य और तेजस। आदित्य अब विधायक हैं। बताया जाता है कि तेजस पढ़ाई कर रहे हैं।

  • ओपन कॉलर शर्ट और टी-शर्ट उद्धव की पसंदीदा पोशाक है, मगर राजनीति में आने के बाद उन्होंने कुर्ता पायजामा अपना लिया।

  • शांत स्वभाव के उद्धव को दोपहर में थोड़ी-सी नींद और शाम को बैडमिंटन खेलना पसंद है।

  • फोटोग्राफी को उद्धव अपने जीवन की 'ऑक्सीजन' बताते हैं। वर्षों तक वह नियमित फोटो प्रदर्शनियां करते रहे। महाराष्ट्र देश (2010) और पाहवा विट्ठल (2011) उनके फोटोग्राफ्स की किताबें हैं।

  • अपनी फोटो प्रदर्शनियों और किताबों से होने वाली कमाई उद्धव किसानों और जरूरतमंदों को बांटते रहे हैं।

  • उद्धव का सपना है कि जीवन में एक बार किसी जागृत ज्वालामुखी, अंटार्कटिका और माउंट एवरेस्ट पर्वत श्रृंखला की तस्वीरें कैमरे में कैद करें।