जब फैसला हो गया तो मानना चाहिए  प्रो. इरफान
प्रख्यात इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब का कहना है कि जब सर्वोच्च न्यायालय का फैसला हो गया तो सभी को उसका सम्मान करना चाहिए। हालांकि वह फैसले से पूरी तरह सहमत नहीं हैं
उन्होंने कहा कि पुरातत्वविद प्रो. बीबी लाल ने बाबरी मस्जिद के नीचे नहीं, बल्कि उसके आसपास खुदाई की थी। पहले उनकी रिपोर्ट में कहीं मंदिर का जिक्र नहीं था। 15 साल बाद आरएसएस की मैगजीन में कहा कि हो सकता है पिलर मंदिर के हों। उन्होंने दोहराया कि जब फैसला हो गया तो मानना चाहिए, लेकिन आशंका भी जताई कि 1991 के एक्ट को भी संसद खत्म कर सकती है।
1991 का एक्ट विद् ड्रा हो जाए तो अच्छा नहीं होगा। अयोध्या के अतिरिक्त अन्य मजहबी जगह इसी एक्ट से प्रोटेक्टेड हैं। प्रो. इरफान हबीब ने कहा कि 1820 के आसपास उज्जैन में एक जैन मंदिर बना। शिवलिंग लेकर पहुंचे लोगों ने मंदिर पर कब्जा कर लिया। क्या आज मंदिर जैनियों को दिया जाएगा। महाराष्ट्र में कई बौद्ध विहार हैं जिन पर दूसरे धर्म के लोगों का कब्जा है, क्या उन्हें बौद्धों को दे दिया जाएगा। विधि के इतिहास में चर्चित लाहौर के गुरुद्वारे की चर्चा भी प्रो. इरफान हबीब ने की, जो एक मस्जिद को तोड़ कर बनाया गया था, लेकिन अंग्रेजों ने कहा कि वहां गुरुद्वारा ही रहना चाहिए।
केके मुहम्मद पर मुझे कुछ नहीं कहना
एएसआई के पूर्व निदेशक पद्मश्री केके मुहम्मद ने आरोप लगाया है कि कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने मुश्किलें बढ़ाई हैं। उन लोगों ने यह साबित करने की कोशिश की कि अयोध्या में मानवीय गतिविधियों के सुबूत नहीं मिलते। इस क्रम में उन्होंने एएमयू के प्रो. इरफान हबीब, जेएनयू की रोमिला थापर एवं डीयू के आरएस शर्मा का नाम भी लिया है। इस संबंध में पूछे जाने पर प्रो. इरफान हबीब ने कहा कि केके मुहम्मद के बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है। वह क्या चाहते हैं, वही जानें।