आंतों के पास न जमा होने दें फैट, हो सकता है इस बीमारी का खतरा
प्री डायबिटीज स्टेज वालों में आंतों के पास फैट जमा है तो शुगर और इससे जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इन मरीजों में इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है। यदि इस पर काबू पा लिया जाए तो तमाम लोगों को मधुमेह रोगी होने से बचाया जा सकता है। इसके लिए अभ्यास के साथ खानपान पर नियंत्रण जरूरी है।
इस बात का खुलासा लोहिया संस्थान के मेडिसिन विभाग के डॉ. निखिल गुप्ता व उनकी टीम के शोध में हुआ है। पेट में त्वचा के नीचे जमा होने वाले वसा को सबक्यूटेनियस और आंतरिक हिस्से में जमा होने वाले वसा को विस्सेरल एब्डॉमिनल फैट कहा जाता है। डॉ. निखिल गुप्ता ने 18 से 60 की उम्र वाले 75 प्री डायबिटीक लोगों पर शोध किया।
इनकी सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड से पेट के वसा की स्थिति जांची गई। इस दौरान जिन लोगों में आंतों के पास फैट अधिक था, उनमें इंसुलिन रेजिस्टेंस पाया गया। इन मरीजों में मधुमेह के साथ ही मेटोबोलिक सिंड्रोम का खतरा अधिक है। इनमें हार्ट डिजीज भी होने की आशंका रहती है।


आईसीयू में भर्ती होने वाले मरीजों में शुगर का खतरा ज्यादा



इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में भर्ती होने वाले मरीजों में शुगर लेवल सामान्य होने के बाद भी शुगर जनित बीमारियों का खतरा अधिक रहता है। इन मरीजों में शरीर से निकले वाला तत्व का लेवल कम और अधिक (ग्लाइसिन गैप) हो जाता है। ऐसे में शुगर लेवल तेजी से बढ़ता है। ऐसे में विशेष सावधानी बरतनी होती है।
इतना ही नहीं आईसीयू से बाहर आने के बाद शुगर की नियमित निगरानी रखनी पड़ती है। यह खुलासा हुआ है केजीएमयू के शोध में। केजीएमयू के मेडिसिन विभाग के डॉ. डी हिमांशु, डॉ. अरविंद मिश्रा, डॉ. मोनिका कलनी ने आईसीयू के मरीजों में अचानक शुगर बढ़ने की वजह की पड़ताल की।
करीब 150 मरीजों में किए गए शोध के दौरान देखा गया कि जिन मरीजों को कभी भी शुगर नहीं रही है, उन्हें भी आईसीयू में आने के बाद शुुगर की समस्या होती है। इसकी मूल वजह है ग्लाइसिन गैप में उतार-चढ़ाव। इसका बढ़ना और घटना दोनों खतरनाक होता है।
इनमें कई बार हाइपोग्लाइसिमिया यानी लो ब्लड शुगर का भी खतरा रहता है। ग्लाइसिन के प्रभावित होने का असर सीधे तौर पर दिमाग के काम करने की क्षमता पर भी पड़ता है। इससे दौरे पड़ने, स्ट्रोक या कोमा जैसी स्थिति भी हो सकती है। यहां तक कि हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से जान भी जा सकती है।