बाराबंकी। नौ अगस्त 1942 की घटना से पूरे देश ने एक स्वर में पूर्ण स्वराज्य का आवाहन किया था। सही मायने में इसी तिथि को भारत की स्वतंत्रता की निर्णायक तिथि के रूप में एक पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए।
यह बात गांधी भवन में गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट द्वारा अगस्त क्रान्ति की 77वीं वर्षगांठ पर आयोजित जन दिवस के मुख्य अतिथि आचार्य नरेन्द्र देव समाजवादी संस्थान के संयुक्त सचिव नवीन चन्द्र तिवारी ने कही।
श्री तिवारी ने आगे कहा कि देश एकजुट होकर दृढ़ निश्चय के साथ चल पड़ा था और अब उसे दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती थी। लेकिन 1942 की क्रांति के साथ ही एक अंदरूनी विघटन का वातावरण बनना शुरु हुआ जिसके कारण न सिर्फ औपचारिक स्वतंत्रता में देर लगी बल्कि देश दो टुकड़ों में बँट गया। इस विभाजन की चोट के कारण शायद हम उस आजादी के बिगुल की आवाज को भूल से गए जो 1942 में बजा था।
इससे पूर्व गांधी भवन में झण्डारोहरण किया गया। तदोपरान्त महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्र्यापण किया। कार्यक्रम के दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जमुना प्रसाद बोस के पुत्र सुरेश बोस का नागरिक अभिनंदन किया गया।
सभा की अध्यक्षता कर रहे उ0प्र कांग्रेस कमेटी के संगठन मंत्री नरेन्द्र पाल वर्मा ने कहा कि सन् 1947 में आज़ादी की नींव का पत्थर नौ अगस्त 1942 का रखा गया। जो अगस्त क्रान्ति आन्दोलन के रूप में जाना जाता है। आज ही वह एतिहासिक दिन जब हम उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को याद करें, जो आधुनिक भारत के शिल्पकार बनें। जिस अहिंसक आन्दोलन की शुरूआत महात्मा गांधी ने की उसे बाद में उन्होंने करो या मरो में परिवर्तित कर दिया।
समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा ने कहा कि अगस्त क्रांति के आन्दोलन ने देश को अदम्य उत्साह, साहस और सार्मथ्य वाले अग्रणी नेता दिए। गांधी तो इस आंदोलन के सूत्रधार थे ही लेकिन यूसुफ मेहरअली, जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अरूणा आसिफ अली और राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव जैसे अग्रणी समाजवादी नेताओं के अलावा जुझारू युवा नेताओं की एक नई पीढ़ी तैयार होकर सामने आई जिसने इस देश की राजनीति को बहुत लंबे अरसे तक प्रभावित किया और राजनैतिक मूल्यों की धरोहर संजोकर रखी। भारत को 9 अगस्त का यह दिन एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना चाहिए।
सभा का संचालन पाटेश्वरी प्रसाद ने किया। इस मौके पर प्रमुख रूप से उप्र कांग्रेस कमेटी पूर्व महासचिव जितेन्द्र चैधरी, उमानाथ यादव 'सोनू', विनय कुमार ंिसह, शिक्षक नेता सुशील कुमार पाण्डेय, मृत्युंजय शर्मा, अशोक शुक्ला, साकेत मौर्या, अधिवक्ता सरदार राजा सिंह, अशोक जायसवाल, संतोष शुक्ला, सहजराम यादव, मेराज किदवई, रवि प्रताप सिंह, कपिल सिंह यादव, ज्ञान तिवारी, विजय बहादुर यादव, चन्द्रशेखर चैहान, संदीप यादव, अवधेश यादव सहित कई लोग मौजूद रहे।
अगस्त 1942 की घटना से पूरे देश ने एक स्वर में पूर्ण स्वराज्य का आवाहन किया था।