लेखन पिछड़ता है तो विचार और चिंतन पिछड़ जाता है: किरन सिंह

बाराबंकी। साहित्य मनुष्य की सर्वश्रेष्ट उपलब्धि है। भाव संवेदना तथा भाषा के उन्नत संयोजन से ही सर्वश्रेष्ट साहित्य का निर्माण होता है। वह हमारी मानसिक प्रक्रिया को गति प्रदान करता है हमारे भीतर मौजूद मनुष्यता को जगाता है और हृदय को विस्तार देता है जिससे कि सारे विभेद खत्म हो जाते हैं। वह हमारे चेतना और संवेदना को उन्नति की ओ अग्रेसर करता है।
उपर्युक्त विचार जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल पी0जी0 कालेज, बाराबंकी के जेपीएन सिंह सभागार में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन करते हुए प्रसिद्ध विद्वान तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रोफेसर सदानन्द गुप्त ने कहा। 
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दी भाषा और साहित्य भारतीय समाज के विभिन्न समूहों मे मौजूद शोषण उत्पीड़न को स्वर दिया है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। 
अध्यक्षीय वक्तव्य में महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. राम शंकर ने कहा कि शोध करते हुए रचना तथा रचनाकार के प्रति भक्तिभाव नहीं बल्कि ज्ञान की दृष्टि जरूरी होती है। 
विषय परिवर्तन करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ राजेश मल्ल ने कहा कि आज हिन्दी साहित्य अपने विगत के मुकाबले आज हाशिये के समाज के प्रति बेहद जागरूक तथा संवेदनशील बना है आज जरूरी है कि हम हाशिये के विमर्श को केन्द्रीय विमर्श बनायें।
दूसरे सत्र की मुख्य वक्ता चर्चित एवं प्रशिद्ध कथाकार किरण सिंह ने कहा कि जब लेखन पिछड़ता है तो विचार और चिंतन पिछड़ जाता है परिणामस्वरूप पूरा समाज पीछे चला जाता है इस लिए लेखक का दायित्व है कि वह मनुष्यता के पक्ष में खड़े होकर निरन्तर विचार चिन्तन तथा लेखन से समाज को अग्रगति देता रहे। 
सेमिनार मे विशेष रूप से डाॅ0 विनय दास, डाॅ. शार्दूल विक्रम सिंह, डाॅ. रीना सिंह, डाॅ. अनिल विश्वकर्मा, डाॅ. अमित कुमार, डाॅ. कृष्ण कान्त चन्द्रा, डाॅ. एस0के0 वर्मा, डाॅ. पीजे पाण्डेय, डाॅ. अम्बरीष कुमार शास्त्री, डाॅ. हेमन्त सिंह ने सहभागिता की।