प्रयागराज 19 जून।स्वास्थ्य मंत्री के मीडिया प्रभारी दिनेश तिवारी प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए बताया कि सुश्री मायावती जी के बयान कि " किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव कभी कोई समस्या नहीं हो सकती है और न ही चुनाव को कभी धन के व्यय-अपव्यय से तौलना उचित है। देश में 'एक देश, एक चुनाव' की बात वास्तव में गरीबी, महंगाई, बेरोजबारी, बढ़ती हिंसा जैसी ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास व छलावा मात्र है " का जवाब देते हुए प्रदेश सरकार के प्रवक्ता एवं कैबिनेट मंत्री श्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा है कि विरोध करने का कारण उचित और स्पष्ट होना चाहिए। लोकतंत्र में सहमति तथा असहमति हो सकती है इसीलिए प्रधानमंत्री जी इस विषय पर सर्वदलीय चर्चा कर रहे हैं किंतु तर्क ऐसे दिए जाने चाहिए जो गले से नीचे उतरते हाें।
श्री सिंह ने कहा 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के गुणों पर चर्चा की जानी चाहिए। देश के अंदर हर साल कहीं न कहीं चुनाव होता ही रहता है। स्वाभाविक है कुछ ऐसे निर्णय होते हैं जो कठोर होते हैं तथा तत्काल उनसे कोई लाभ होता हुआ नहीं दिखता है किंतु दीर्घावस्था में उनका देश हित या राज्य हित में लिया आवश्यक होता है, वहां सरकार को निर्णय लेने में कठिनाई होती है, पैरामिलिट्री फोर्सेज को सुरक्षा के काम करने होते हैं जबकि वह चुनाव में फंसी रहती हैं, लाखों-करोड़ों हजार रुपए अतिरिक्त खर्च हो जाते हैं। इसके अलावा वोटर भी फंसा रहता है। पहले भी यही यही व्यवस्था विद्यमान थी। पहले असेंबली और लोकसभा के चुनावों को साथ में कराया जा सकता है तथा आगे भविष्य में नगर इकाइयों के चुनाव भी साथ में कराए जा सकते हैं। इसीलिए सब लोगों को साथ लेकर चलना है। संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से बदलाव पर भी विचार किया जा रहा है।
पत्रकार द्वारा एक अन्य विषय पर पूछे गए सवाल के जवाब में श्री सिंह ने कहा कि परिस्थिति अनुसार विधानसभा चुनावों में विधानसभा के कार्यकाल को आगे या पीछे सरकाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर 2024 को मानक लेने पर जिस राज्य में विधानसभा का कार्यकाल 2022 में खत्म होना है वहां उसे बढ़ाकर 2024 तक ले जाया जा सकता है इसी प्रकार जिन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल 2024 के आगे खत्म हो रहा होगा वहां पर उनके कार्यकाल को घटाकर 2024 पर लाया जा सकता है। बाद में इसी प्रकार से नगर इकाइयों के चुनाव को भी साथ में संपन्न कराया जा सकता है।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव कभी कोई समस्या नहीं हो सकती है और न ही चुनाव को कभी धन के व्यय-अपव्यय से तौलना उचित है।