बैशाखी के सहारे चल रहा परिवहन विभाग

प्रयागराज, 23 जून। उच्च न्यायालय के आदेश एवं सरकार की सख्ती के बावजूद भी अव्यवस्थाओं का अंबार लगा हुआ है। परिवहन विभाग के अफसरों की तमाम कोशिश के बाद भी परिणाम धरातल पर कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। हिम्मत और लगन के बावजूद अधिकारी मजबूर हो रहे हैं।
परिवहन विभाग एक ऐसा विभाग है जो हमेशा असुरक्षित रहता है। अगर अधिकारी वर्ग सरकार के नियम और निर्देशों का पालन करने हेतु सड़क पर निकले तो उन्हें नेताओं, माफियाओं और चाटुकारों से उलझना पड़ता है। कभी- कभी तो ऐसा भी समय आता है कि अफसरों के सही कामों का प्रतिफल उन्हें टर्मिनेट के रूप में दिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ नेताओं द्वारा देख लेने की भी धमकी सुननी पड़ती है। दो सिपाही के भरोसे जब अधिकारी निरीक्षण पर निकलते हैं तो उन्हें अपनी जान की बाजी लगाकर नौकरी करनी पड़ती है। फिर भी जान हथेली पर रखकर अपने कार्यों का निर्वहन करते हैं। ईमानदारी और नियम से काम करने वाले अधिकारी पर शासन में बैठे नेताओं का कब फोन आ जाये कोई ठीक नहीं। इसलिए चाहकर भी सुधार कर पाना प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर जैसा है।
सूत्रों के मुताबिक कोई अधिकारी जब अवैध बसों का चालान करता है या थाने में बंद कराता है, तो ऐसी स्थिति में सत्ता पक्ष से फोन आने शुरू हो जाते हैं। इसके साथ ही ज्यादा परेशानी होने पर उक्त अधिकारी का स्थानांतरण भी कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय का आदेश कि प्राइवेट बसों का स्टैण्ड बस डिपो से एक किमी की दूरी पर होनी चाहिए। लेकिन सब धड़ल्ले से बस डिपो के सामने से ही सवारी भरते रहते हैं।