मूँग की फसल लेकर आय व मृदा स्वास्थ्य  बढ़ाएँ
जलालाबाद कन्नौज

 कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डॉ. वी. के. कनौजिया तथा अमरेन्द्र यादव, वैज्ञानिक मौसम विज्ञान ने किसान भाईयों को सलाह दी है, कि यह समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है जहाँ एक तरफ कोरोना वायरस से सावधानी बरतनी है।  वहीं गेहूँ की फसल की कटाई आपके द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रही है। ऐसा देखने को मिलता  है, कि गेहूँ के बाद खेत खाली छोड़ दिए जाते हैं और मध्य जून के बाद उनमे खरीफ हेतु तैयारियाँ प्रारम्भ हो जाती है। ऐसी स्थिति में इन दो माह या 60 दिनों का उपयोग मूँग की फसल उगाकर किया जा सकता है, जिससे अतिरिक्त उत्पादन व आय के साथ मृदा के स्वास्थ्य में भी बढ़ोत्तरी की जा सकती है, और यदि फलियों की तुड़ाई के बाद फसल को खेत में पलट दिया जाता है तो भूमि की उर्वरा शक्ति में और अधिक सुधार होगा।  मूँग की विभिन्न प्रजातियाँ जैसे श्वेता, आई. पी. एम. 2-3, विराट व सम्राट की बुवाई का समय चल रहा है। इनकी बुवाई यथा संभव 15 अप्रैल तक प्रत्येक दशा में पूर्ण कर लेनी चाहिए।   गेहूँ की कटाई के उपरान्त खेत खाली करने के उपरान्त पलेवा कर खेत की जुताई उपरान्त बुवाई हेतु तैयार कर लें। एक हेक्टेयर में मूँग के 20- 25 किग्रा स्वस्थ बीज की आवश्यकता होगी जिसे थीरम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बुवाई के पहले ही उपचारित करके रख लें।  उसके बाद बुवाई के  कुछ घण्टे पहले राइज़ोबियम व पी. एस. बी. कल्चर के एक -एक पैकेट को, पैकेट ऊपर पर लिखे हुए निर्देशानुसार प्रति 10 किग्रा बीज की दर से मिलाकर छाया में सुखायें। बीजों की बुवाई पंक्ति से पंक्ति 25 -30 सेमी. की दूरी पर कूँड़ में करना चाहिए तथा बुवाई के समय 100 किग्रा/हे. की दर से डी. ए. पी. का प्रयोग करना उचित होगा। यदि खेत में गंधक की कमी हो तो खेत की तैयारी के समय 25-30 किग्रा गंधक/हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के उपरान्त पाटा लगाएं तथा पहली सिंचाई 25 दिन से पहले न करें।  इसके बाद एक या दो सिंचाई आवश्यक्तानुसार कर सकते हैं। फूल बनते समय सिंचाई करना उचित नहीं होगा। परन्तु खेत में नमी का होना आवश्यक है। सस्य क्रियाएं करते समय एक दूसरे से दूरी बनाए रखें। मुँह को ढककर रखे तथा समय समय पर हाथों को धोते रहें। स्वस्थ्य रहें खुश रहें। डॉ. वी. के. कनौजिया, वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष  कृषि विज्ञान केन्द्र , कन्नौज।

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