कानून को विसरा की रिपोर्ट, तो अपनों को इंसाफ का इंतजार, 80 फीसदी मामलों में स्पष्ट नहीं मौत का कारण

मौत का कारण स्पष्ट करने वाली विसरा रिपोर्ट का इंतजार भारी पड़ रहा है। कानून को विसरा रिपोर्ट और अपनों को इंसाफ दिलाने का इंतजार लंबा है। मेरठ में 81 फीसदी विसरा रिपोर्ट कानून के हाथों में नहीं पहुंच पाई, जिसके चलते आरोपियों को सजा का इंतजार है। सरकारी महकमों में पत्राचार चलता रहा है। अधिकांश मामले तो ऐसे हैं, जिनमें विसरा रिपोर्ट न आने के कारण मौत का राज कभी खुल नहीं पाता।



मौत क्यों, कैसे और किससे हुई, इसको जानने के लिए पोस्टमार्टम कराया जाता है। लेकिन पोस्टमार्टम के बाद भी यदि मौत का कारण स्पष्ट नहीं होता तो डॉक्टर विसरा सुरक्षित रखते हैं। पुलिस द्वारा बताए गए मौत के कारण को डॉक्टर नहीं मानते।
अधिकांश मामलों में किसी जहरीले पदार्थ का सेवन करने, फांसी जैसे मामले, किसी गंभीर बीमारी के कारण या फिर संदिग्ध परिस्थिति के चलते मौत होने पर विसरा सुरक्षित किया जाता है। इसके अलावा विसरा रिपोर्ट कई अनसुलझी बातें स्पष्ट करती है। 



यह है विसरा 
जिला अस्पताल के डॉ. आरके गुप्ता के मुताबिक पोस्टमार्टम करने के दौरान शव के विसरल पार्ट यानी किडनी, लीवर, दिल, पेट के अंगों का सैंपल लिया जाता है, इसे विसरा कहते हैं। इनको जांच के लिए केमिकल एक्जामिनर के पास भेजा जाता है। मौत का कारण, मौत का समय, किस पार्ट के फेल होने से मौत हुई आदि सवालों के जवाब विसरा रिपोर्ट आने के बाद पुलिस को मिल जाते हैं।
80 फीसदी मामलों में मौत का कारण स्पष्ट नहीं
टीपीनगर स्थित रघुकुल विहार में अरोड़ा फैमिली के पांच सदस्यों की मौत हुई थी। एक शव बेड पर मिला, जबकि चार शव छत पर बने लोहे के जाल से रस्सी से लटके मिले थे। लालकुर्ती में नेहा नाम की युवती और उसकी मां सुमनलता की हत्या हुई थी।
शास्त्रीनगर में व्यापारी उसकी पत्नी, बेटी की संदिग्ध हालत में मौत हुई थी तो शास्त्रीनगर में किराना व्यापारी मोहित मदान की भी संदिग्ध हालत में मौत हुई थी। इनके समेत 80 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें मौत का कारण स्पष्ट नहीं हुआ।





चार्जशीट लगती, कार्रवाई अधूरी  
सीनियर अधिवक्ता अमित दीक्षित का कहना है कि विसरा रिपोर्ट आने से पहले ही पुलिस चार्जशीट लगाकर कोर्ट में दाखिल कर देती है। लेकिन पुलिस की कार्रवाई अधूरी रह जाती है। कोर्ट बार-बार पुलिस को नोटिस देती है कि विसरा रिपोर्ट दाखिल करो। उसके बाद पुलिस फोरेंसिक साइंस लैब (एफएसएल) को रिमाइंडर भेजती है। चर्चित और संगीन मामले में या उच्चस्तर पर दबाव पड़ने पर पुलिस एफएसएल से रिपोर्ट मंगाती है। 




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