प्रयागराज। सांस्कृतिक केंद्र का मुक्ताकाशी मंच सोमवार को साहित्य के बहाने कविता के अप्रतिम हस्ताक्षरों के नाम समर्पित रहा। निमित्त बने जानेमाने कवि डॉ.कुमार विश्वास। अवसर था उनका चर्चित कार्यक्रम 'तर्पण', जिसके तहत उन्होंने प्रयागराज के नामवरों महाप्राण निराला, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, धर्मवीर भारती, हरिवंश राय बच्चन और कैलाश गौतम को उन्हीं की रचनाओं से सांगीतिक श्रद्धांजलि दी। यह पहला अवसर रहा, जब स्टूडियो से बाहर किसी सार्वजनिक मंच से 'तर्पण' अर्पित किया गया। 'हमारा इलाहाबाद' के साथ कुमार ने विनम्रता से कहा कि इस शहर के बिना हिंदी साहित्य अधूरा है
छंदहीन कही जाने वाली निराला की कविताएं किताबों से निकलकर गीत के रूप में शब्द-शब्द बहती, संवाद करती, मन में उतरती रहीं। कालजयी रचनाओं ने 'पुनर्जीवन' के साथ श्रोताओं से हिंदी के रिश्ते को और मजबूत किया। हिंदी के सामान्य विद्यार्थियों से लेकर हाईकोर्ट के न्यायमूर्तियों सहित अनेक विशिष्टजनों की मौजूदगी में कुमार बार-बार इलाहाबाद, यहां के रचनाकारों और यहां की ठसक को प्रणाम करते रहे। बोले, ये वह लोग हैं जिन्होंने हिंदी को गढ़ा है, मुझे गढ़ा है। यह भी कि आज अपने पूर्वजों को शाब्दिक-सांगीतिक तर्पण देकर मैं बहुत उत्साहित हूं, सो यह कार्यक्रम मेरे लिए अविस्मरणीय है।
खास यह कि इक्का-दुक्का पंक्तियों से इतर उन्होंने अपना कुछ नहीं सुनाया, सिर्फ हिंदी के पूर्वजों को ही याद करते रहे। हालांकि उन्होंने अपनी चर्चित पंक्ति, कोई कल कह रहा था, तुम इलाहाबाद रहते हो, सुनाकर नाता जोड़ा। मंच को पवित्र करने के संकल्प के साथ उन्होंने सस्वर निराला की सरस्वती वंदना से शुरुआत करते हुए कैलाश गौतम तक के रचनाकर्म को गेय शैली में श्रोताओं तक पहुंचाया। कुमार ने बांधो न नाव इस ठांव बंधु और वह तोड़ती पत्थर जैसी रचनाएं गाकर सुनाई।
बोले, महादेवी ने बताया कि अकेलेपन में कोई आदमी कितना बड़ा हो सकता है। कैलाश गौतम की चर्चित रचना 'अमवसा का मेला' के पाठ के दौरान पूरेसमय तक तालियां बजती रहीं। भारती की पंक्ति, अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे' पर श्रोताओं ने कुमार का साथ दिया। युवाओं ने निराला से लेकर कैलाश गौतम तक की पंक्तियां उनके साथ दोहरायीं। संग आई अंकिशा ने महादेवी की नीर भरी दुख की बदली को सस्वर सुनाया। आमतौर पर कवि मंचों पर पंडाल में भी बतकही चलती रहती है, लेकिन यहां सिर्फकविता हुई, बंद रही बातचीत। आरंभ में केंद्र निदेशक इंद्रजीत ग्रोवर ने कुमार का स्वागत और आरजे निवेेश ने संचालन किया।
कविता के लिए लगीं कतारें
संभवत ऐसा पहली बार हुआ कि कविता सुनने के लिए लोगों ने पास के साथ कतारबद्ध होकर प्रवेश किया। हर कोई जल्दी भीतर जाकर अपनी सीट सुरक्षित कर लेना चाहता था। श्रोताओं में समाज के सभी वर्ग के लोग शामिल रहे। और लोगों ने अंत तक या तो आह, वाह या फिर खामोशी से कुमार के बहाने अपने इलाहाबाद को जाना, सुना।
जारी रहीं चुटीली टिप्पणियां
कुमार अपने ही अंदाज में नजर आए। कविता पाठ के बीच उनकी चुटीली टिप्पणियां जारी रहीं। 0 बच्चन को याद करते समय जब तालियां बजीं तो कुमार बोले, दूसरे बच्चन को पता होना चाहिए कि उनके 'बाप' का मार्केट अभी भी हाई है।
एक नागार्जुन भी यहां के होते तो इलाहाबाद के कविता संसार की तस्वीर और ठसक कुछ और ही होती।
ज्यादा लिखने वाले मेरे पूर्वज बदहाल रहे, इसीलिए मैं कम कविता सुनाकर ज्यादा पैसे लेता हूं ताकि फिर कोई हिंदी को कोई हेय न समझे।
कुमार को पहला 'कैलाश गौतम काव्य कुंभ सम्मान'
'तर्पण' के दौरान कैलाश गौतम सृजन संस्थान की ओर से संयोजक डॉ.श्लेष गौतम ने कुमार विश्वास को पहले 'कैलाश गौतम काव्य कुंभ सम्मान' से नवाजा। इसके तहत उन्हें शाल ओढ़ाने के बाद प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।
छंदहीन कही जाने वाली निराला की कविताएं किताबों से निकलकर गीत के रूप में शब्द-शब्द बहती, संवाद करती, मन में उतरती रहीं। कालजयी रचनाओं ने 'पुनर्जीवन' के साथ श्रोताओं से हिंदी के रिश्ते को और मजबूत किया। हिंदी के सामान्य विद्यार्थियों से लेकर हाईकोर्ट के न्यायमूर्तियों सहित अनेक विशिष्टजनों की मौजूदगी में कुमार बार-बार इलाहाबाद, यहां के रचनाकारों और यहां की ठसक को प्रणाम करते रहे। बोले, ये वह लोग हैं जिन्होंने हिंदी को गढ़ा है, मुझे गढ़ा है। यह भी कि आज अपने पूर्वजों को शाब्दिक-सांगीतिक तर्पण देकर मैं बहुत उत्साहित हूं, सो यह कार्यक्रम मेरे लिए अविस्मरणीय है।
खास यह कि इक्का-दुक्का पंक्तियों से इतर उन्होंने अपना कुछ नहीं सुनाया, सिर्फ हिंदी के पूर्वजों को ही याद करते रहे। हालांकि उन्होंने अपनी चर्चित पंक्ति, कोई कल कह रहा था, तुम इलाहाबाद रहते हो, सुनाकर नाता जोड़ा। मंच को पवित्र करने के संकल्प के साथ उन्होंने सस्वर निराला की सरस्वती वंदना से शुरुआत करते हुए कैलाश गौतम तक के रचनाकर्म को गेय शैली में श्रोताओं तक पहुंचाया। कुमार ने बांधो न नाव इस ठांव बंधु और वह तोड़ती पत्थर जैसी रचनाएं गाकर सुनाई।
बोले, महादेवी ने बताया कि अकेलेपन में कोई आदमी कितना बड़ा हो सकता है। कैलाश गौतम की चर्चित रचना 'अमवसा का मेला' के पाठ के दौरान पूरेसमय तक तालियां बजती रहीं। भारती की पंक्ति, अगर मैंने किसी के होंठ के पाटल कभी चूमे' पर श्रोताओं ने कुमार का साथ दिया। युवाओं ने निराला से लेकर कैलाश गौतम तक की पंक्तियां उनके साथ दोहरायीं। संग आई अंकिशा ने महादेवी की नीर भरी दुख की बदली को सस्वर सुनाया। आमतौर पर कवि मंचों पर पंडाल में भी बतकही चलती रहती है, लेकिन यहां सिर्फकविता हुई, बंद रही बातचीत। आरंभ में केंद्र निदेशक इंद्रजीत ग्रोवर ने कुमार का स्वागत और आरजे निवेेश ने संचालन किया।
कविता के लिए लगीं कतारें
संभवत ऐसा पहली बार हुआ कि कविता सुनने के लिए लोगों ने पास के साथ कतारबद्ध होकर प्रवेश किया। हर कोई जल्दी भीतर जाकर अपनी सीट सुरक्षित कर लेना चाहता था। श्रोताओं में समाज के सभी वर्ग के लोग शामिल रहे। और लोगों ने अंत तक या तो आह, वाह या फिर खामोशी से कुमार के बहाने अपने इलाहाबाद को जाना, सुना।
जारी रहीं चुटीली टिप्पणियां
कुमार अपने ही अंदाज में नजर आए। कविता पाठ के बीच उनकी चुटीली टिप्पणियां जारी रहीं। 0 बच्चन को याद करते समय जब तालियां बजीं तो कुमार बोले, दूसरे बच्चन को पता होना चाहिए कि उनके 'बाप' का मार्केट अभी भी हाई है।
एक नागार्जुन भी यहां के होते तो इलाहाबाद के कविता संसार की तस्वीर और ठसक कुछ और ही होती।
ज्यादा लिखने वाले मेरे पूर्वज बदहाल रहे, इसीलिए मैं कम कविता सुनाकर ज्यादा पैसे लेता हूं ताकि फिर कोई हिंदी को कोई हेय न समझे।
कुमार को पहला 'कैलाश गौतम काव्य कुंभ सम्मान'
'तर्पण' के दौरान कैलाश गौतम सृजन संस्थान की ओर से संयोजक डॉ.श्लेष गौतम ने कुमार विश्वास को पहले 'कैलाश गौतम काव्य कुंभ सम्मान' से नवाजा। इसके तहत उन्हें शाल ओढ़ाने के बाद प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।