शिवसेना संग गठबंधन पर सोनिया ने कहा था, ऊपर जाकर महात्मा गांधी का सामना कैसे करूंगी

मुंबई के शिवाजी मैदान में कल शाम कांग्रेस एनसीपी के समर्थन से बन रही सरकार के मुखिया के रूप में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, लेकिन बहुत कम लोगों को ही यह मालूम होगा कि शुरुआती दौर में सोनिया गांधी शिवसेना के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के सख्त खिलाफ थीं और राहुल गांधी अभी भी इसे लेकर पूरी तरह सहज नहीं हैं। शायद इसीलिए अभी तक उन्होंने महाविकास अघाड़ी का नेता चुने जाने और मुख्यमंत्री नामित होने वाले उद्धव ठाकरे को बुधवार देर शाम तक बधाई नहीं दी और न ही यह साफ हुआ कि सोनिया और राहुल महाविकास अघाड़ी की सरकार जिसमें कांग्रे्स भी एक तिहाई की हिस्सेदार है के मुख्यमंत्री के शपथ समारोह में शामिल होंगे या नहीं।



राहुल की असहजता और सोनिया के असमंजस के बावजूद अहमद पटेल और दिग्विजय सिंह ने महाराष्ट्र के कांग्रे्स नेताओं के साथ मिलकर जो बिसात बिछाई उससे वह मुमकिन हो गया जिसकी कल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से लेकर सर संघ चालक मोहन भागवत तक ने कभी नहीं की थी। भाजपा इसी भरोसे पर शिवसेना को दबा रही थी कि उसके पास कोई विकल्प ही नहीं है क्योंकि अगर शिवसेना हिंदुत्व का रास्ता छोड़कर एनसीपी कांग्रेस के साथ जाना भी चाहे तो कांग्रेस कभी भी इसके लिए तैयार नहीं होगी। लेकिन कांग्रेस के इन दोनों रणनीतिकारों ने इस नामुमकिन को मुमकिन बना दिया।
कांग्रेस के भरोसेमंद सूत्रों की अगर मानें तो जब चुनाव नतीजों और भाजपा शिवसेना की खटपट शुरू होने के बाद पहली बार शरद पवार महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने के विचार के साथ सोनिया गांधी से मिले तो सोनिया का जवाब था कि अगर कांग्रेस ने शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाई तो मैं ऊपर जाकर महात्मा गांधी का सामना कैसे करूंगी। यह जानकारी देने वाले कांग्रेस के भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि इसके बाद शरद पवार चुप हो गए। फिर उन्होंने सोनिया को समझाने की कोशिश की और भाजपा व मोदी शाह जोड़ी के खिलाफ व्यवहारिक रणनीति के तकाजे का हवाला दिया लेकिन सोनिया ने अपना मन नहीं बदला। 
इतना जरूर उन्होंने कहा कि मुझे इस मुद्दे पर और सोचने व पार्टी में चर्चा करने का वक्त दीजिए। इसीलिए जब शरद पवार सोनिया के घर से निकले तो उन्होंने इंतजार कर रही मीडिया द्वारा बार बार पूछने पर सिर्फ यही कहा कि उनकी सोनिया से महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति पर बातचीत हुई लेकिन शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने पर कोई चर्चा नहीं हुई। शिवसेना के साथ गठबंधन को लेकर सोनिया का यह रुख कांग्रेस के कुछ उन नेताओं से चर्चा करने की वजह से बना था जिन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। इनमें प्रमुख रूप से महाराष्ट्र के प्रभारी मल्लिकार्जुन खड़गे, पार्टी महासचिव(संगठन) केसी वेणुगोपाल और वरिष्ठ नेता गुलामनबी आजाद भी शामिल थे। बल्कि केरल के ज्यादातर नेता शिवसेना के साथ जाने का इसलिए भी विरोध कर रहे थे कि इसका नुकसान उन्हें केरल में होगा और वाम मोर्चा सीधा फायदा उठाएगा।



गठबंधन विरोधी दलों की ये थी दलील 
गठबंधन विरोधी नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष को कहा कि अगर पार्टी शिवसेना के साथ सरकार बनाती है तो न सिर्फ महाराष्ट्र में बल्कि पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता के साथ उसका वैचारिक प्रतिष्ठान ध्वस्त हो जाएगा और वामदलों, सपा, बसपा और एमआईएम जैसे दलों को कांग्रेस के खिलाफ प्रचार का एक बड़ा हथियार मिल जाएगा जिसका नुकसान पार्टी को केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश,बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, प.बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में खासा होगा। जबकि कांग्रेस के कुछ नेता भाजपा के विजय रथ को रोकने और महाराष्ट्र जैसे बड़े और अहम राज्य को उससे छीनने के लिए शिवसेना से हाथ मिलाने के पक्ष में थे। कांग्रेस की इसी उहापोह ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का मौका दे दिया। 
उधर शिवसेना के साथ गठबंधन की संभावना खत्म होते देख कांग्रेस नेता और लगातार दो बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके आचार्य प्रमोद कृष्णम ने पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह से बात करके उनसे आग्रह किया वह इस मामले में पहल करके नेतृत्व को राजी करें।सूत्रों के मुताबिक दिग्विजय ने कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार और कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल से बात की। पटेल भी गठबंधन के हक में थे।उन्होंने महाराष्ट्र के प्रमुख कांग्रेस नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण, पृथ्वीराज चह्वाण, प्रदेश अध्यक्ष बाला साहब थोराट, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे से बात करके उन्हें इसके लिए तैयार किया कि वह कांग्रेस अध्यक्ष को जमीनी हालात से अवगत कराएं।
इसके बाद अहमद पटेल ने इन सारे नेताओं को सोनिया गांधी से मिलवाया। फिर जयपुर में एक होटल में मौजूद सभी पार्टी विधायकों से सोनिया और प्रियंका की बात कराई गई। कुल 44 में से 40 से ज्यादा विधायकों ने शिवसेना एनसीपी कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में राय दी और यह भी कहा कि अगर कांग्रेस सरकार में शामिल नहीं हुई तो कितने विधायक कांग्रेस में रहेंगे कोई कुछ नहीं कह सकता। विधायकों के दबाव और महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं के आग्रह ने गठबंधन विरोधी नेताओं के तर्कों को हल्का कर दिया और सोनिया गांधी ने गठबंधन को मंजूरी दे दी। इसके बाद फौरन अहमद पटेल के.सी वेणुगोपाल और मल्लिकार्जुन खड़गे मुंबई गए और शिवसेना कांग्रेस एनसीपी नेताओं की संयुक्त बैठकों का दौर शुरू हुआ जो आगे चलकर महाविकास अघाड़ी का जन्म हुआ।




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