हड़ताल मुश्किल, बर्खास्तगी आसान बनाने वाला बिल लोकसभा में पेश, विपक्ष ने बताया श्रमिक विरोधी

केंद्र सरकार ने गुरुवार को इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड बिल लोकसभा में पेश किया। इसके विभिन्न प्रावधानों में औद्योगिक संस्थानों में हड़ताल करने को कठिन बनाया गया है जबकि बर्खास्तगी को आसान



हालांकि विपक्षी सदस्य अधीर रंजन चौधरी और सौगत राय इस विधेयक को संसदीय समिति के हवाले किए जाने की मांग कर रहे थे लेकिन श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने विधेयक को पेश करते हुए कहा इसमें श्रमिकों के हितों का पूरा ख्याल रखा गया है।
इस विधेयक में श्रमिकों की एक नई श्रेणी बनाई गई है फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट, यानी एक नियत अवधि के लिए रोजगार। इस अवधि के समाप्त होने पर कामगार का रोजगार अपने आप खत्म हो जाएगा। इसके जरिए औद्योगिक संस्थान ठेकेदार के जरिए श्रमिकों को रोजगार देने के बजाय अब खुद ही ठेके पर लोगों को रोजगार दे सकेंगे। इस श्रेणी के कामगारों को तनख्वाह और सुविधाएं नियमित कर्मचारियों जैसी ही मिलेंगी।
इसी तरह किसी भी संस्थान में श्रमिक संघ को तभी मान्यता मिलेगी जब उस संस्थान के कम से कम 75 प्रतिशत कामगारों का समर्थन उस संघ को हो। इससे पहले यह सीमा 66 प्रतिशत थी।
नए विधेयक  के तहत सामूहिक आकस्मिक अवकाश को हड़ताल की संज्ञा दी जाएगी और हड़ताल करने से पहले कम से कम 14 दिन का नोटिस देना होगा।

मुआवजा घटा


अब नौकरी जाने की सूरत में किसी भी कर्मचारी को उस संस्थान में किए गए हर वर्ष काम के लिए 15 दिनों की तनख्वाह का ही मुआवजा मिलेगा। इससे पहले के विधेयक में हर वर्ष के काम के बदले 45 दिन के मुआवजे का प्रावधान था। नौकरी से निकाले जा रहे कर्मचारी को नए कौशल अर्जित करने का मौका मिलेगा जिससे उसे दोबारा रोजगार मिल सके। इसका खर्च पुराना संस्थान ही उठाएगा।

तीन कानून खत्म


इस बिल के कानून बनने पर ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, इंडस्ट्रियल एंप्लॉयमेंट एक्ट 1946, और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947 अपने आप खत्म हो जाएंगे। इस विधेयक को लाने का उद्देश्य भारत में काम करने की सुगमता यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग बेहतर करना है।

श्रम सुधार का हिस्सा


श्रम सुधारों को तेज करने के लिए श्रम मंत्रालय ने 44 श्रम कानूनों को चार कोर्ट में बांटने का जिम्मा उठाया था - वेतन औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की स्थितियां। इनमें से वेतन संबंधी श्रम कोड को संसद ने अगस्त में ही पारित कर दिया था जबकि स्वास्थ्य सुरक्षा और काम करने की स्थितियां संबंधी विधेयक श्रम संबंधी संसदीय समिति के हवाले है।

विपक्ष ने किया विरोध


आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन, टीएमसी के सौगत रॉय और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने बिल पेश किये जाने का विरोध करते हुए इसे श्रम मामलों की संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की।
प्रेमचंद्रन ने कहा, इसमें राज्यों से जरूरी परामर्श नहीं किया गया है। वहीं सौगत रॉय ने कहा, यह श्रमिक विरोधी बिल है, इसके लिए किसी मजदूर संगठन ने कभी मांग नहीं की। सरकार इस बिल को उद्योग संगठन की मांग पर लेकर आई है।
इस पर श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा, इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो श्रमिक विरोधी हो। यह विधेयक सरकार के चार कानूनों में मजदूरों से संबंधित 44 विधानों को समाहित करके श्रम कानूनों में सुधार की पहल का हिस्सा है। कैबिनेट ने इस बिल को 20 नवंबर को मंजूरी दे दी थी।