झांसी। कर्ज वापसी न होने से ग्रामीण एवं सहकारी बैंक भी खस्ताहाल होते जा रहे हैं। कर्ज न लौटने से ग्रामीण बैंक को इस साल 27 करोड़ एनपीए करने पड़े जबकि जिला सहकारी बैंकों को भी 11 करोड़ रुपये बट्टेखाते में डालने पर मजबूर होना पड़ा।
ग्रामीण इलाकों में व्यवसायिक बैंकों की सीमित पहुंच को देखते हुए सरकार ने ग्रामीण बैंक एवं सहकारी बैंकों की शुरूआत की। इन बैंकों को कर्ज देने की सहुलियत भी दी गई लेकिन सहकारी बैंकों में राजनीतिक दखल की वजह से मनमाने तरीके से कर्ज बांटे गए। रसूख के दम पर कोआपरिटव शाखाओं से ऐसे लोगों नेे कर्ज हासिल कर लिए जिनके नाम-पता अब तलाशने पर भी नहीं मिल रहे। करीब तीस साल पुराने लोन भी बैंक को नहीं लौटाए जा रहे।
इस वजह से हर साल बैंकों पर एनपीए (वह रकम, जिसके वापस मिलने की उम्मीद नहीं होती) का बोझ बढ़ता जा रहा। चालू वित्तीय वर्ष के आखिरी आकड़ों के मुताबिक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का कुल 27,38,55,000 रुपये एनपीए कर दिया गया। यही हाल सहकारी बैंकों का है। यहां कुल 11,02,93,000 रुपये बट्टेखाते में डालने पड़े। कर्ज वापस न लौटने से भूमि विकास बैंक की भी हालत पतली है। भूमि विकास बैंक को 5,47,25,000 रुपये बट्टेखाते में डालने पड़े हैं।
पैसा डूबने के पीछे राजनीतिक रसूख बड़ी वजह
बैंक सूत्रों के मुताबिक ग्रामीण बैंक एवं सहकारी बैंकों में जो पैसे डूब रहे उनमें से ज्यादातर कर्ज अधिकारियों एवं राजनेताओं की सांठगांठ से बांटे गए। जब इन कर्जों की वसूली आरंभ हुई, तब अब न पता मिल रहा और न उस नाम का कोई आदमी। काफी खोजबीन के बाद अब जब कर्जधारक सामने नहीं आए, तब यह रकम बट्टेखाते में डाली जा रही है।
जो पैसा एनपीए हुआ है, वह रकम करीब तीस साल पहले बांटी गई। उस समय बोर्ड के अधिकारियों की मिलीभगत से गैरजिम्मेदारना तरीके से पैसा दिया गया। वही रकम बैंक को वापस नहीं मिल रही। अब बैंक एक लाख रुपये से अधिक को कर्ज नहीं दे रहा
जयदेव पुरोहित
चेयरमैन, डिस्टिक्ट कोआपरेटिव बैंक
ग्रामीण इलाकों में व्यवसायिक बैंकों की सीमित पहुंच को देखते हुए सरकार ने ग्रामीण बैंक एवं सहकारी बैंकों की शुरूआत की। इन बैंकों को कर्ज देने की सहुलियत भी दी गई लेकिन सहकारी बैंकों में राजनीतिक दखल की वजह से मनमाने तरीके से कर्ज बांटे गए। रसूख के दम पर कोआपरिटव शाखाओं से ऐसे लोगों नेे कर्ज हासिल कर लिए जिनके नाम-पता अब तलाशने पर भी नहीं मिल रहे। करीब तीस साल पुराने लोन भी बैंक को नहीं लौटाए जा रहे।
इस वजह से हर साल बैंकों पर एनपीए (वह रकम, जिसके वापस मिलने की उम्मीद नहीं होती) का बोझ बढ़ता जा रहा। चालू वित्तीय वर्ष के आखिरी आकड़ों के मुताबिक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का कुल 27,38,55,000 रुपये एनपीए कर दिया गया। यही हाल सहकारी बैंकों का है। यहां कुल 11,02,93,000 रुपये बट्टेखाते में डालने पड़े। कर्ज वापस न लौटने से भूमि विकास बैंक की भी हालत पतली है। भूमि विकास बैंक को 5,47,25,000 रुपये बट्टेखाते में डालने पड़े हैं।
पैसा डूबने के पीछे राजनीतिक रसूख बड़ी वजह
बैंक सूत्रों के मुताबिक ग्रामीण बैंक एवं सहकारी बैंकों में जो पैसे डूब रहे उनमें से ज्यादातर कर्ज अधिकारियों एवं राजनेताओं की सांठगांठ से बांटे गए। जब इन कर्जों की वसूली आरंभ हुई, तब अब न पता मिल रहा और न उस नाम का कोई आदमी। काफी खोजबीन के बाद अब जब कर्जधारक सामने नहीं आए, तब यह रकम बट्टेखाते में डाली जा रही है।
जो पैसा एनपीए हुआ है, वह रकम करीब तीस साल पहले बांटी गई। उस समय बोर्ड के अधिकारियों की मिलीभगत से गैरजिम्मेदारना तरीके से पैसा दिया गया। वही रकम बैंक को वापस नहीं मिल रही। अब बैंक एक लाख रुपये से अधिक को कर्ज नहीं दे रहा
जयदेव पुरोहित
चेयरमैन, डिस्टिक्ट कोआपरेटिव बैंक