15 अगस्त तक टली अयोध्या मामले की सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता समिति को दिया तीन महीने का समय

उच्चतम न्यायालय में शुक्रवार को पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अयोध्या मामले की सुनवाई की। पांच जजों की पीठ का नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने किया जिसमें न्यायमूर्ति एसए बोबडे, एसए नजीर, अशोक भूषण और डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे। मध्यस्थता समिति ने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में जजों को सौंपी। सकारात्मक समाधान के लिए मध्यस्थता समिति ने अदालत से 15 अगस्त तक का समय मांगा जो उसे मिल गया। अब मामले की अगली सुनवाई 15 अगस्त के  
तीन सदस्यों वाली मध्यस्थता समिति ने अदालत से और समय मांगा ताकि इस मामले का सौहार्दपूर्ण समाधान निकाला जा सके। जिसके बाद अदालत ने उन्हें 15 अगस्त तक का समय दे दिया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'हम आपको यह नहीं बताने वाले हैं कि क्या प्रगति हुई है, यह गोपनीय है।'
पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने तीन सदस्यों वाली एक मध्यस्थता समिति का गठन किया था। जिसकी अध्यक्षता अदालत के पूर्व जज जस्टिस एफएम आई कलीफुल्ला कर रहे हैं। आठ मार्च को उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता समिति को आठ हफ्ते में अपनी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा था।

आठ मार्च को इस मामले के पक्षकार निर्मोही अखाड़े को छोड़ लगभग सभी हिन्दू पक्षकारों व उत्तर प्रदेश सरकार के विरोध के बावजूद उच्चतम न्यायालय ने करीब 70 साल पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का हल निकालने के मध्यस्थता को चुना था। जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली इस समिति में अध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थता विशेषज्ञ वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू हैं। 
पीठ ने कहा था कि इस विवाद का समाधान निकालने के लिए मध्यस्थता करने में किसी तरह की रुकावट नहीं है। पीठ ने मध्यस्थता के लिए फैजाबाद को चुना था। पैनल को आठ हफ्ते में काम पूरा करने का निर्देश दिया गया था। मध्यस्थता की कार्यवाही बंद कमरे में करने का निर्देश दिया गया था।