नाक, कान और गला खराब होने की वजह बना प्रदूषण, रिपोर्ट में हुआ खुलासा, अब रहें सावधान

प्रदूषण नाक, कान और गले को बेहद नुकसान पहुंचा रहा है। ध्वनि और वायु प्रदूषण खासकर कानों को न सिर्फ गंभीर बीमारियां दे रहा है, बल्कि सुनने की क्षमता को भी काफी कम कर रहा है। यह खुलासा पिछले 12 माह में (नवंबर 2018 से अक्तूबर 2019) जिला अस्पताल की नाक-कान-गला रोग (ईएनटी) ओपीडी में आए 25 हजार मरीजों पर की गई स्टडी में हुआ है।


इनमें से करीब 25 प्रतिशत मरीज ऐसे निकले, जिनके सुनने की क्षमता प्रभावित थी। इसके अलावा उन्हें टिनिटस (कान बजना) बीमारी निकली है। इनमें सबसे ज्यादा मरीज 20 से 50 साल उम्र के बीच के थे। इन मरीजों में नाक की एलर्जी और गले के इंफेक्शन की भी शिकायत थी। सामान्य तौर पर यह बीमारी पहले 60 साल की उम्र के बाद होती थीं, मगर अब युवा अवस्था में ही यह चपेट में ले रहा है।
इस तरह हो रहा कानों पर वार
तेज स्वर में संगीत सुनने और ईयरफोन पर घंटों गाना सुनने के कारण कान की बाहरी परत क्षतिग्रस्त हो जाती है और इस कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है। कानों में दर्द होना, धीमी आवाजें न सुनाई देना, किसी तरह का दबाव महसूस होना, सूजन आना या कान से तरल पदार्थ का बहना, कानों की प्रमुख समस्याएं निकली हैं। 20 से 50 साल आयु वर्ग के करीब 80 प्रतिशत लोग मोबाइल फोन का अधिक प्रयोग करते हैं, जिनसे उन्हें कानों की समस्याएं हो रही हैं। वाहनों के बढ़ते उपयोग से ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ गया है, जो कानों को नुकसान पहुंचा रहा है।