प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने मॉरीशस में भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के प्रथम आगमन की 185वीं जयंती पर कहा कि पोर्ट लुई स्थित अप्रवासी घाट से भारत का अटूट रिश्ता है। हिंद महासागर तट पर स्थित पोर्ट लुई का यह अप्रवासी घाट भारतीयों की अनकही पीड़ा और शोषण के उस उपनिवेशवाद के युग की याद दिलाता है जो हमारे पूर्वजों ने यहां भोगा।
कठिन जीवन बिताया और अपने खून-पसीने से इस धरती को सींचा व पल्लवित किया। राज्यपाल शनिवार को पोर्ट लुई में इस घाट पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय समारोह में बोल रही थीं। उन्होंने अप्रवासी घाट पर पूर्वजों को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
राज्यपाल ने कहा कि 2 नवंबर 1834 को ही अंग्रेजों ने मॉरीशस में खेती के लिए भारत से गिरमिटिया मजदूरों को यहां भेजा था।
अप्रवासी घाट हमारे लोगों के खून और पसीने के अटूट बंधन का एक स्मारक है। ज्वालामुखी की चट्टान से बने घाट की सीढ़ियां हमें याद दिलाती हैं कि हमारे लाखों पूर्वजों को हिंद महासागर पार कर यहां कैसे लाया गया और उनके प्रियजनों को कठोर व कष्टदायी जीवन भोगने के लिए पीछे ही छोड़ दिया गया। महात्मा गांधी भी करीब 110 वर्ष पहले दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटते समय दो सप्ताह मॉरीशस में रुके थे।
राज्यपाल ने कहा कि 2 नवंबर 1834 को ही अंग्रेजों ने मॉरीशस में खेती के लिए भारत से गिरमिटिया मजदूरों को यहां भेजा था।
अप्रवासी घाट हमारे लोगों के खून और पसीने के अटूट बंधन का एक स्मारक है। ज्वालामुखी की चट्टान से बने घाट की सीढ़ियां हमें याद दिलाती हैं कि हमारे लाखों पूर्वजों को हिंद महासागर पार कर यहां कैसे लाया गया और उनके प्रियजनों को कठोर व कष्टदायी जीवन भोगने के लिए पीछे ही छोड़ दिया गया। महात्मा गांधी भी करीब 110 वर्ष पहले दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटते समय दो सप्ताह मॉरीशस में रुके थे।