देश के हुक्मरान दावा ठोंक रहे हैं। किसानों की आय दुगनी और देश ेकी अर्थव्यवस्था फाईव टिलयन डालर यानी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था हो जायेगी। आज देश की पचास प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर हैें।किसानों की बीस प्रतिशत उपज बर्बाद हो जाती है।देश मेंअनाज भण्डार गृह,शीतगृहों काअभाव है जिसके चलते दुनिया को चटनी , अचार ,मुरब्बा एवं पापड़ का कन्स्प्ट देने वाला भारत देश फूड प्रोसेसिंग यूनिट के धंधे में अभी बहुत पीछे है।जिसके चलते किसान अपन खेतो में गन्ना जला देते हैं। ेआलू सड़कों पर यहां तककि विधानसभा के सामने लावारिस छोड़कर चले जाते हैं।ै टमाटर, संतरा प्याज अथवा सागसब्जी मण्डी में भेजने के बजाए जानवर के सामने डालना ज्यादा बेहतर समझते हैं क्योंकि किसान को माल से ज्यादा ढुर्लाइ बड़ी लगती है।़ सरकारी सोंच है प्रगति का रास्ता उद्योगों से जाता है। यह अलग बात है मंदी भी इसी रास्ते से आई है। सरकारी दावा तभी सही साबित हो सकता है।जब देश की पचास प्रतिशत अबादी की खून पसीने की मेहनत का प्रतिफल देश को मिलेै। वरना यह संदेश जाता रहेगा। कृषि भारत के लिए बोझ है।
अर्थव्यवस्था पर सरकारी दावा अपनी समझ से परें?