साक्षा संस्कृति को मिलना चाहिए बल: डाॅ विनयदास

बाराबंकी।  रविवार को दशहराबाग पंचमदास कूटी स्थित अपने आवास पर डाॅ विनयदास ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए बताया कि बदल रही सामाजिक व्यवस्थाओं में राजनीति का जाति संप्रदाय खास के प्रति केंद्रित होना संस्कृति एवं  समाज के खतरनाक है। इस दौरान उन्होंने अपनी पुस्तक ''विनयदासः सृजन एवं संदर्भ'' पर चर्चा करते हुए बताया कि उनकी इस चिन्ता को किताब की विषय वस्तु में बेहतर तरीके से व्यक्त किया गया है। उन्होंने बताया कि साझावादी संस्कृति ही हमारी सामाजिक समरसता को कायम रख सकती है। इसलिए राजनीतिक दलों को सत्ता में आने के बाद किसी धर्म व जाति विशेष केे प्रति अतिवादी होने की जगह साथ ही समाज के प्रति अपने दायित्वों को समझना जरूरी है। 
इस दौरान ''विनयदासः सृजन एवं संदर्भ'' पुस्तक पर चर्चा करते हुए स्थानीय साहित्य प्रेमियों को यह पुस्तक उपलब्ध कराई गई। पुस्तक में वर्णित शोध विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डाॅ सियाराम के मार्गदर्शन में रागिनी ओझा द्वारा किए होेने की जानकारी देते हुए डाॅ विनयदास ने बताया कि पुस्तक का विमोचन पिछले दिनों नेपाल में हुए अन्र्तराष्ट्रीय अवधी सम्मेलन में हुआ। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में उन लोगो के भी नाम है जिन्होनें साहित्य सृजन में व प्रचार प्रसार में किसी न किसी रूप में सहयोग किया है।
पत्रकारों से वार्ता करते हुए डाॅ विनयदास ने बताया कि उनके कहानी संगृह ''सही गलत के बीच'' के लिए हिन्दी साहित्य संस्थान उ0प्र0 ने यशपाल पुरस्कार, दलित साहित्य अकादमी ने ''हगनहा ताल'' उपन्यास के लिए डाॅ अम्बेडकर फैलोशिप नेशनल अवार्ड, तथा राज्यकर्मचारी साहित्य संस्थान लखनऊ ने ''साहित्य गौरव'' पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया है। इन पुरस्कारों के अलावा उन्हें नेपाल, भूटान व थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रमों में भी सम्मानित किए गया है। 
इस मौके पर डाॅ श्याम सुन्दर दीक्षित, सीताकान्त मिश्र, आशीष, निशान्त द्विवेदी, धर्मेन्द्र द्विवेदी, पंकज कंवल, प्रदीप महाजन, अजय प्रधान आदि उपस्थित रहे।