कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे राजीव गांधी, पायलट से कैसे बने प्रधानमंत्री, कुछ अनसुने किस्से

आज (21 मई) को देश के पूर्व पीएम और भारत रत्न राजीव गांधी की पुण्य तिथि है। अपने छोटे से राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई ऐसे काम किए जिसके लिए वह आज भी याद किए जाते हैं। आज के इस मौके पर हम उन्हें उनके जीवन की कुछ ऐसी बातों से याद कर रहे हैं जो कितने भी साल हो जाएं, भुलाई नहीं जा सकती। राजीव गांधी शायद कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे, इसीलिए वो एक एअरलाइन्स कंपनी में पायलट की नौकरी करते थे। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इमरजेंसी के बाद सत्ता छोड़नी पड़ी थी तो वो कुछ दिनों के लिए विदेश चले गए थे, लेकिन समय उनसे कुछ और ही मांग रहा था।


20 अगस्त 1944 को जन्मे राजीव गांधी, इंदिरा गांधी के बड़े बेटे थे। राजीव राजनीति में कोई खास रुचि नहीं रखते थे, इसलिए वो अपने मां के प्रधानमंत्री रहते हुए भी लाइमलाइट में नहीं आए जिस तरह से उनके छोटे भाई संजय गांधी जो कि अमेठी से सांसद भी थे।


लेकिन अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई दुर्घटना में मौत हो जाने के बाद राजीव ने राजनीति का दामन थाम लिया। संजय गांधी की मौत के बाद वो अपनी मां इंदिरा के साथ राजनीति में आए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वो 1984 में भारी बहुमत के साथ भारत के सातवें प्रधानमंत्री बने। राजीव राजनीति में आए और पहली बार उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट से जीतकर संसद में गए।


राजीव अपनी सरलता के लिए जाने जाते थे। राजीव ने सन् 1966 में एक प्रोफेशनल पायलट के तौर पर इंडियन एअरलाइंस ज्वाइन किया था। कांग्रेस में आने के शुरुआती दिनों में राजीव पार्टी के जनरल सेक्रेटरी रहे और उन्हें एशियन गेम्स को संपन्न कराने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई। भाई संजय की मौत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा की हत्या ने जहां कांग्रेस को हताश कर दिया था वहीं राजीव को भी काफी मुश्किलों में डाल दिया था। राजीव को राजनीति में आए अभी कुल चार साल भी नहीं हुए थे कि मां का साया सर से उठ जाने के बाद उन्हें कांग्रेस सहित देश के प्रधानमंत्री पद की भी जिम्मेदारी संभालनी पड़ी।


प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव का भी विवादों से दामन जुड़ गया। भोपाल गैस कांड, शाहबानो प्रकरण, लिट्टे और फिर बोफोर्स की खरीददारी ने राजीव के दामन पर दाग के छीटें लगा दिए थे। बोफोर्स के बुलबुले ने राजीव गांधी से अगले चुनावों में प्रधानमंत्री पद की कुर्सी छीन ली, जिसके बाद वो करीब दो वर्षों तक विपक्ष में रहे। अगले आम चुनावों में कांग्रेस के जीतने के साथ-साथ राजीव के प्रधानमंत्री बनने की संभावना बहुत कम थी, लेकिन इसी दौरान वो घटना घट गई जिसका अंदाजा किसी को नहीं था।


शायद खुद राजीव को भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि श्रीपेरंबदूर में उनकी हत्या हो जाएगी और देश को फिर वही दिन देखना होगा जो उसने तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर देखा था। साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया।